हेलो दोस्तों इस पोस्ट में हम dashrath manjhi ki kahani के बारे में बताने वाले हैं दशरथ मांझी एक ऐसा नाम है जिससे दुनिया मिशाल देती है आज हम उसी दशरथ मांझी की कहानी के बारे में बताने वाले हैं काफी ऐसे लोग हैं जो इसकी कहानी से अनजान है यदि आप भी इसकी कहानी को पढ़ने और समझने की कोशिश करते हैं तो यह आपके जीवन में काफी बदलाव दिला सकती है।
इसलिए इस कहानी को शुरू से लेकर लास्ट तक जरूर पढ़े ताकि आपको दशरथ मांझी जैसे व्यक्ति के बारे में पता चल सके चलते हैं बिना देरी किए हुए अपने टॉपिक की ओर
Dashrath Manjhi ki Kahani | दशरथ मांझी की कहानी
माउंटेन कहां जाने वाले दशरथ मांझी का जन्म 1934 में बिहार राज्य के गया जिले में गहलोर नाम के बहुत ही पिछड़े गांव में रहता था दशरथ मांझी का गांव इतना पिछड़ा हुआ था कि ना तो वहां पर किसी प्रकार की स्कूल ना हॉस्पिटल और ना ही दुकान थे ।
इसके अलावा उनको पीने के पानी के लिए भी 3 किलोमीटर पैदल जाना होता था इसे आप पता लगा सकते हैं कि गहलोर कितना पिछड़ा हुआ गांव था। गांव से शहर की ओर जाने में उनको 70 किलोमीटर का फासला तय करना होता था जो कि यह पर्वत के किनारों से होकर गुजरता है ।
यदि वह लोग बाहर के किनारे से नहीं जाते हैं तो पहाड़ के ऊपर से चढ़कर जाना पढ़ता था जो काफी कठिन था दशरथ बहुत ही छोटी उम्र में गरीबी के कारण गांव से भागकर एक कोयले की खान में काम करके कुछ दिनों बाद घर वापस आता है और गांव में एक फागुनी लड़की से शादी करता है।
दशरथ मांझी अपनी पत्नी से फागुनी से बहुत प्यार करता था दशरथ मांझी अपनी पत्नी को फगुना कहकर बुलाते थे अपनी बीवी को बहुत प्यार करते थे जैसे अकबर मुमताज जैसा प्यार उनके जीवन में एक बहुत बड़ी घटनाएं सामने आए जो दिल दहलाने वाली घटना थी।
पता नहीं किस चीज की उनके प्यार को नजर लग गई इससे उनको इस दिल दहलाने वाली घटना का सामना करना पड़ा। एक बार जब दशरथ मांझी पहाड़ पर लकड़ियां काटने गया था तो उसके बाद दशरथ मांझी के लिए खाना लेकर उसके पत्नी जब दशरथ मांझी को खाना खिलाने जाती है तो जब वह पहाड़ पर चढ़ती है तो उसका पेड़ फिसल जाता है और वह पहाड़ से गिर जाती है।
वह बहुत ही ज्यादा गर्मी हो जाती है और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन यदि कुछ समय फागुनी को किसी हॉस्पिटल में ले जाया होता तो शायद उसकी जान बच सकती थी लेकिन गहलोत से हॉस्पिटल अर्थात शायरी कस्बा बहुत दूर होने के कारण यह पॉसिबल नहीं था ।
क्योंकि उनके गांव से और शहर के बीच एक पहाड़ था जो कि काफी दूरी से गिरा हुआ था उसके बाद दशरथ मांझी अपने प्यार को हो जाने के कारण काफी दुखी रहने लगे काफी दिनों तक पर बहुत परेशान रहे क्योंकि वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करने वाली अपनी पत्नी को खो चुके थे।
कुछ दिन बीत जाने के बाद उन्होंने एक संकल्प लिया कि आज के बाद मेरी तरह कोई दो प्यार करने वाले इस घटना से जुदा नहीं होंगे मैं दशरथ मांझी इस पहाड़ को तोड़ के बीच से रास्ता बनाऊंगा ताकि और कोई दूसरा इस घटना का शिकार ना हो सके।
उसके बाद से दशरथ मांझी 22 साल लगातार अपने संकल्प को पूरा करने के लिए लगे रहे ना उन्होंने दिन देखा और ना ही रात मैं अपने काम को अंजाम देने के लिए सब कुछ त्याग चुका था उनके मन में एक ही ख्याल आता था और वह थी उसकी पत्नी जिसे वह हो चुका था।
इस 22 वर्ष के दौरान दशरथ मांझी को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा जैसे धूप छांव सर्दी गर्मी और इसके साथ ही गांव वालों ने भी उन्हें पागल कहने लगे और इसके साथ ही उसके परिवार वालों ने भी उसका साथ छोड़ दिया तब भी वह अपने संकल्प को पूरा करने के लिए लगे रहे।
लेकिन दोस्तों कहते हैं ना कि संघर्ष में अकेला होता है लेकिन सफलता में सभी उसके साथ खड़े रहते हैं। क्योंकि दोस्तों कहा जाता है कि जिस जिस पर संचार हंसा है उसी ने इतिहास रचा है दशरथ मांझी ने भी अपना संकल्प पूरा किया उन्होंने 360 लंबी और 30 फीट चौड़ी और 25 फीट ऊंचे पहाड़ का सीना तोड़ दिया और दशरथ मांझी ने अपना बदला उस पहाड़ से ले लिया था।
जिसने उसकी पत्नी को छीना था अभी के समय गहलोत से वजीर की दूरी जो पहले 60 से 70 पिटाह करते थे वह अभी केवल 10 फीट रह चुकी है बच्चों का स्कूल जो पहले 10 किलोमीटर था वह अभी 3 किलोमीटर रह गया है पहले के समय में लोग अस्पताल पहुंचने में पूरा दिन लगाते थे अभी 30 मिनट के अंदर हॉस्पिटल पहुंच जाते हैं दोस्तों जब दशक माझी अपने संकल्प को पूरा कर रहे थे तो उन्हें गांव वाले पागल कहने लगे थे।
लेकिन दशरथ मांझी ने कुछ ऐसा कर दिखाया जो आज की समय कोई नहीं कर सकता उन्होंने एक चीनी और हथौड़ी के बल पर एक पहाड़ को चिर डाला। लेकिन दोस्तों वह चीज करने में मजा है जिसे लोग कहते हैं कि तू इस काम को नहीं कर सकता
दोस्तों यह दशरथ मांझी की कहानी हमें काफी समझाती है दशरथ मांझी कहते हैं की यदि इंसान संयम रखता है और अपने काम को शिद्दत से करता है तो वह काम कितना भी बड़ा क्यों ना हो वह अपने काम पर जरुर सफलता प्राप्त कर लेता है ।
क्योंकि दोस्तों दशरथ मांझी को पत्थर का गुरूर तोड़ने में 22 साल लगे थे उन्होंने 22 साल तक ना किसी धूप छांव को देखा और ना किसी सर्दी गर्मी को उसके बाद भी उन्होंने संयम रखा और दशरथ मांझी उस पत्थर का गुरूर तोड़ने में कामयाब रहे